ताम्रपाषाण काल ( Chalcolithic Period)
नवपाषाण काल का अंत होते होते धातुओं के प्रयोग की शुरुआत हुई जिसमे सबसे पहले तांबे का प्रयोग पत्थरो के साथ मिश्रित कर औजारों/उपकरण बनाने में हुआ मानव द्वारा पत्थर और तांबे के साथ मिलकर उपकरण प्रयोग करने के कारन कई संस्कृतियों का जन्म हुआ इन संस्कृतियों को ताम्रपाषण (Chalcolithic) कहते है
- पहली धातु जिसका प्रयोग औजारों में किया गया वह तांबा है तांबे का सर्वप्रथम प्रयोग 5000 ईसा पूर्व किया गया!
- भारत में हड़प्पा की कांस्य संस्कृति पहले आती है परन्तु तकनीकी दृष्टि से ताम्रपाषण अवस्था हड़प्पा की कांस्य युगीन संस्कृति से पहले की है
- ताम्रपाषण कालीन युग के लोग मुख्यत "ग्रामीण समुदाय" के थे,जो देश के ऐसे विशाल भागों में फैले थे जहाँ पहाड़ी,जमीन,नदिया थी
- इसके विपरीत हड़प्पाई लोग कांसे का प्रयोग करते थे और सिन्धुघाटी के बाद वाले मैदानों में हुई उपज के कारण "नगर निवासी" हो गए थे
- ताम्रपाषाण काल के मानव का जीवन, कृषि, पशुपालन आदि पर आधारति था
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यहाँ हम सर्वप्रथम ताम्रपाषाण संस्कृति पर विचार करेंगे
- ताम्रपाषाण काल को तीन अवस्थाओं में देखा गया है :
- हड़प्पापूर्व ( हड़प्पा सभ्यता से पूर्व)- जहाँ हड़प्पा सभ्यता से पहले तांबे का प्रयोग देखा गया है
- समकालीन हड़प्पा सभ्यता - हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत भी हम बड़ी मात्रा में तांबे के प्रयोग को पढ़ते है
- उत्तर हड़प्पाई ताम्रपाषाण संस्कृति- हड़प्पा सभ्यता के बाद भी तांबे का प्रयोग
ताम्रपाषाण युग के स्थल
- बलूचिस्तान - मेहरगढ़ , नाल , कुल्ली, क्वेटा
- सिंधु- आमरी,कोटिदीजीयान
- मध्य प्रदेश - मालवा,कायथा, एरण, नवदाटोली
- महाराष्ट्र- जोर्वे, नेवासा, दैमाबाद , इनामगांव
- राजस्थान- अहाड, गिलूण्ड, बालाथल
- बंगाल- वीरभूमि, वर्दमान, मिदनापुर
a. मालवा संस्कृति- मध्य प्रदेश के छोटे-छोटे संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करती थी
b . अहाड़ संस्कृति - राजस्थान के छोटे-छोटे संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करती है
c .जोर्वे संस्कृति -महाराष्ट्र के छोटे-छोटे संस्कृतियों का प्रतिनिधत्व करती है
अहाड़ संस्कृति
- अहाड़ संस्कृति राजस्थान के बनास नदी के किनारे विकसित ग्रामीण संस्कृति थी जिसे "बनास संस्कृति" भी कहते है
- यह संस्कृति अन्य क्षेत्रीय संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करती थी जैसे गिलूण्ड, बालाथल आदि
- अहाड़ संस्कृति को "ताम्रवादी " कहा गया जिसका अर्थ है ताम्बावाली जगह क्योकि यहाँ से बड़ी मात्रा में तांबा मिला था
- अहाड़ के पास गिलूण्ड में मिटटी की इमारत बनी है पर कही कही पक्की ईंटों के साक्ष्य भी मिले है गिलूण्ड में तांबे के टुकड़े भी मिले है
- अहाड़ के लोग पत्थर निर्मित घरो में रहते थे
मालवा संस्कृति
- यह संस्कृति मध्य प्रदेश के ग्रामीण संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती थी इसमें कायथा और नवदाटोली का विशेष स्थान है जहाँ अहाड़ संस्कृति तांबा के लिए विख्यात थी वही मालवा संस्कृति मृदभाण्ड( मिटटी के बर्तन) के लिए विख्यात थी
- कायथा हड़प्पा संस्कृति का समकालीन है इसके मृदभाण्डो में हड़प्पाई प्रभाव भी देखने को मिलता है
- कायथा के एक घर में तांबे के 29 कंगन, 2 अद्रितीय ढंग की कुल्हाड़ी पायी गयी है तथा स्टेटाइट और कार्नेलियन जैसी क़ीमती पथरो के हार प्राप्त हुए है
- इस काल में प्रायः मिटटी के बर्तन ही बनते थे
- नवदाटोली से मिटटी, बांस और फूस के बने चौकोर और वृताकार घर मिले है
जोर्वे संस्कृति
- यह संस्कृति महाराष्ट्र के ग्रामीण संस्कृति का परिचारक है
- यह महाराष्ट्र के ग्रामीण संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती थी
- जिनमे नेवासा, दैमाबाद ,इनामगांव का विशेष स्थान है दैमाबाद गेंडा,हाथी, भैंस एव रथ चलते हुए मनुष्य की मूर्ति मिली है
- इनामगांव स्थल पर चूल्हो सहित बड़े-बड़े कच्ची मिटटी के मकान और गोलाकार मकान मिले है
- दैमाबाद में कांसे की निर्मित वस्तुएँ प्राप्त हुई है
- जोर्वे संस्कृति की एक और मुख्य विशेषता थी की यहाँ वयस्क व्यक्ति के मृत्यु के बाद पैर का निचला हिस्सा काटकर दफनाया जाता था हालांकि यह उनके अंधविश्वास को सूचित करता है
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
- ताम्रपाषाण काल का मानव जिन उपकरणों का प्रयोग करते थे उनमे दो धार वाली कुल्हाड़ी, भाला, फर्शा,दो सिंही तलवार आदि शामिल थे भारत में पहली बार ग्रामीण सभ्यता की स्थापना "ताम्रपाषाण काल" में ही हुई है
- हालांकि ताम्रपाषाण काल ग्रामीण संस्कृति का रहा परन्तु "दैमाबाद" और "इनामगांव" में नगरीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी थी
- इस काल में लोग मातृदेवी की पूजा करते थे!
- ताम्रपाषाण काल में मृतकों को घर के फ़र्श के नीचे उत्तर से दक्षिण की दिशा में दफ़न किया जाता था हलाकि पूर्व-पश्चिम दिशा में भी दफ़नाने के साक्ष्य प्राप्त हुए है
- इस काल में प्रयोग किय गए चित्रित मृदभांड काले तथा लाल रंग के होते थे
- ताम्रपाषाण युग की सबसे बड़ी बस्ती "दैमाबाद " है
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धन्यवाद , जय हिन्द
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