सिंधु घाटी सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता, मोहनजोदड़ों सभ्यता (Indus Valley Civilization)
हड़प्पा सभ्यता का उदय ताम्रपाषाणिक पृष्ट्भूमि मे भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग हुआ! इसे हड़प्पा तथा सिंधु घाटी सभ्यता दोनों नामो से जाना जाता है, क्योकि हड़प्पा प्रथम स्थल खोजा गया था जबकि सिंधु नदी के पास खुदाई मे मिलने वाले स्थलों की संख्या अधिक होने के कारण इसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहते है!
अन्नागार :
7. जंगली जानवर जैसे सूअर, हिरण, घड़ियाल आदि की हड्डिया भी प्राप्त हुई है परन्तु यह कहा नहीं जा सकता इनका शिकार किया गया है
1828 मे चार्ल्स मैसेन का ध्यान इस तरफ आकर्षित हुआ जब उन्होंने देखा की आस-पास के ग्रामीण लोग मिट्टी से बनी बनाई ईंटों को निकाल कर इनका प्रयोग अपना घर बनाने मे कर रहे है परन्तु इस घटना की तरफ अधिक ध्यान नहीं दिया गया!बाद मे सन 1853-1856 करांची से मध्य रेलवे ट्रैक बिछाने के दौरान कनिंघम के नेतृत्व मे दो भाइयो "बर्टन बंधुओ " द्वारा हड़प्पा स्थल की सुचना सरकार को दी गयी!
1921 मे हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन का कार्य "दयाराम साहनी " द्वारा किया गया तथा हड़प्पा सभ्यता का नामकरण किया गया , खुदाई के दौरान निचे पुरे शहर की प्राप्ति हुई!
उत्खनन के दौरान इसी प्रकार के कई स्थल किसी ना किसी संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त हुए 1922 मे हड़प्पा सभ्यता से मिलती जुलती सभ्यता " मोहनजोदड़ो " का उत्खनन " रखालदास बनर्जी" द्वारा शुरू किया गया !
सिंन्धु घाटी सभ्यता आर्य-पूर्व सभ्यता को कहा जाता है, जो पश्चिम पंजाब (वर्तमान पकिस्तान ) के हड़प्पा तथा सिंध के मोहनजोदड़ो के उत्पन्न से प्रकाश मे आई!
इसका पूरा क्षेत्र 1,299,600 वर्ग किलोमीटर है, अब तक हड़प्पा संस्कृति के लगभग 1500 स्थलों पता लगाया जा चूका है,जिसमे कुछ विकसित हड़प्पा स्थल है!
सभ्यता का काल
सिंधु घाटी सभ्यता के काल के निर्धारण मे इतिहासकारो के मध्य मतभेद देखा गया है, इस संबंध मे इतिहासकारो ने अलग-अलग तर्क दिए थे!
- इतिहासकार व्हीलर के अनुसार 2800 ई.पू. से 1500 ईसा पूर्व था!
- डॉ. वी.ए स्मिथ के अनुसार इस सभ्यता का काल 2500 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व था!
- सर जॉन मार्शल के अनुसार इस सभ्यता का काल 4000 ईसा पुराव से 2500 ईसा पूर्व था!
- डॉ.आर.के.मुखर्जी के अनुसार 3250 ईसा पूर्व से 2750 ईसा पूर्व था!
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सिंधु घाटी सभ्यता |
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताए
नगर नियोजन
- हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केंद्रों का विकास था जिसमे मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद पुरास्थल है, जबकि हड़प्पा सबसे पहला खोजा गया पुरास्थल था!
- सिंधु घाटी सभ्यता अपनी नगर नियोजन के लिए विश्व प्रसिद्द है अतः इसे नगरीय सभ्यता भी कहा जाता है!
- सबसे अधिक जनसंख्या के साक्ष्य मोहनजोदड़ो मे मिलते है माना जाता है यह शायद उस समय राजधानी रही होगी!
- मोहनजोदड़ो मे बस्तिया दो भागो मे है, एक छोटा परन्तु ऊंचाई पर बनाया गया है तथा दूसरा कही अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया था जिसे क्रमश; दुर्ग तथा निचला भाग कहा गया है!
- दुर्ग (ऊचाई पर बना स्थल ) दीवार से घेरा गया था जिसका अर्थ है की उस निचले शहर से अलग किया गया था!
- नियोजन के अन्य लक्षणों मे ईंट शामिल है जिनका प्रयोग धुप मे सुखाकर या भट्टी पकाकर किया जाता था!
- हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशेषताओं मे से एक जल निकासी प्रणाली थी!
- सड़को तथा गलियों को लगभग एक " ग्रिड पद्त्ति "मे बनाया गया था तथा ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थी!
- ऐसा प्रतीत की पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके आस-पास आवासों का निर्माण किया गया!
- नालियों को बड़े पत्थरो से ढका जाता था तथा नालियाँ पक्की ईंटो से बनाई जाती थी!
- अनरेस्ट मैके के अनुसार जल निकास प्रणालिया केवल बड़े शहरों तक सीमीत नहीं थी, बल्कि ये कई छोटी बस्टियप में भी मिलती थी! उदहारण: लोथल मे आवासों के निर्माण के लिए जहा कच्ची ईंटो प्रयोग हुआ था, वही नालियाँ पक्की ईंटो से बनाई गयी थी
- मोहनजोदड़ो के दुर्ग क्षेत्र मे सामन्यता: पुरोहित( धनी ) वर्ग के लोग रहते थे निचला शहर आवासीय भवनों (साधारण लोगो ) के उदहारण प्रस्तुत करता है!
- प्रत्येक भवन मे आँगन बने थे जिसके चारो और कमरे बने थे सम्भवत: आँगन, आना पकने और कताई जैसी गतिविधियों के लिए होता था!
- मुख्य द्वार से आंतरिक भाग अथवा आँगन को सीधा नहीं देखा था!
- हर ईंटो से बना स्नानागार होता था कुछ घरो में छत पर जाने हेतु बनाई गयी सीढ़िया भी प्राप्त हुई है!
- कई आवासों में कुँए थे जो अधिकांश एक ऐसे कक्ष मे बनाये गए थे जिसमे सकता था संभवत: इसका प्रयोग राहगीरों द्वारा जाता था!
- मोहनजोदड़ो मे लगभग 700 कुँए प्राप्त हुए थे तथा दुर्ग क्षेत्रों मे स्नानागार मिले है जो आयतकार जलाशय थे तथा चारो और गलियों से घिरे थे!
- जलाशय तक जाने के लिए उत्तर तथा दक्षिण भाग में 2 सीढिया बनी थी
- जलाशय के किनारो पर ईटों को जमकर तथा जिप्सम के गारे के प्रयोग से इसे जलबद्ध किया गया है
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Indus Valley Civilization |
अन्नागार :
- उत्खनन में मोहनजोदड़ों, हड़प्पा, कालीबंगा में विशाल अन्नागार का प्रमाण मिला है यह अन्नागार दर्शाते है की सिंधु घाटी सभ्यता में काफी मात्रा में अन्न सुरक्षित करके रखा जाता था
निर्वाह के तरीके
1 . सिंधु घाटी सभ्यता के लोग शाकाहारी और माँसाहारी दोनों प्रकार के थे
2. हड़प्पा निवासी पेड़-पौधों प्राप्त उत्पाद तथा जानवर जैसे- मछली आदि से भोजन प्राप्त करते थे
3. जले अनाज तथा बीजों की खोज से पुरातत्विदों को आहार संबंधी जानकारी प्राप्त हुई है
4. हड़प्पा स्थलों से मिले अनाज के दानों में गेंहू ,जौ ,दाल ,सफ़ेद चना शामिल है
5. बाजरे के दाने के साक्ष्य " गुजरात" के स्थलों से प्राप्त हुए है जबकि चावल के अपेक्षाकृत कम साक्ष्य मिले है
6. हड़प्पा स्थलों से मवेशियों, भेड़, बकरी, भैंस सूअर की हड्डियाँ प्राप्त हुई है जीव- पुरातत्विदों अनुसार यह सभी पालतू जानवर थे
7. जंगली जानवर जैसे सूअर, हिरण, घड़ियाल आदि की हड्डिया भी प्राप्त हुई है परन्तु यह कहा नहीं जा सकता इनका शिकार किया गया है
सामाजिक भिन्नताओं का अवलोकन
संस्कृति विशेष में रहने वालो लोगो के बीच सामाजिक- आर्थिक भिन्नताएँ मौजूद थी जिनकी जानकारी दो माध्यमों से मिलती है
a . शवाधान - हड़प्पा स्थलों से मिले शवाधानो में आमतौर पर मृतकों को गरतो में दफनाया जाता था कुछ कब्रों में मृदभाण्ड तथा आभूषण मिले है जबकि कुछ कब्रों में तांबे के दर्पण मिले मिले है
- इससे प्रतीत होता है की उच्च वर्गों द्वारा क़ीमती आभूषणों का प्रयोग तथा निम्न वर्गों द्वारा सामान्य वस्तुओ का प्रयोग होता था
- जबकि कीमती धातु जैसे - "फ्यांस" तथा महँगे पत्थरो से बनी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यत मोहनजोदड़ों तथा हड़प्पा जैसे बड़ी बस्तियों में प्राप्त हुई है उदहारण के लिए- कालीबंगा जैसे छोटी बस्तियों में "फ्यांस" से बने लघुपात्र के कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए है
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल
1. केंद्रीय नगर:- सिंधु घाटी सभ्यता के 3 केंद्रीय नगर हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, धौलावीरा थे जो मुख्यतः बड़ी बस्तिया थी
- हड़प्पा - हड़प्पा खोजी जाने वाली पहली बस्ती थी यह वर्तमान पाकिस्तान के पश्चिम पंजाब के मांटगोरी जिले के रावी नदी के बाएं तट स्थित है
- मोहनजोदड़ों - मोहनजोदड़ों का अर्थ " मृतकों का टीला " है वर्तमान समय में मोहनजोदड़ों पकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के किनारे स्थित प्रमुख नगर है सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा तथा प्रमुख नगर था
- धौलावीर - हड़प्पा कालीन नगरों की श्रृंखला में धौलावीरा नवीनतम खोज है यह नगर गुजरात के रण के मध्य कच्छ जिले में स्थित है
===> यहाँ के नगर तीन भागों में विभाजित थे
===> जल संग्रहण हेतु 16 जलाशय प्राप्त हुए है
===> सबसे पुराने स्टेडियम के साक्ष्य भी धौलावीरा से प्राप्त हुए है
===> साथ ही एक सूचनापत्र प्राप्त हुआ है
2. तटीय नगर तथा पतन:- सिंधु सभ्यता के अनेक नगर जो "बंदरगाह" के रूप में कार्य करते थे तथा अरब सागर तट पर विकसित हुए थे
- लोथल- लोथल गुजरात प्रान्त के अहमदाबाद जिले के भागवा नदी के समीप स्थित है
===> लोथल में बंदरगाह के साक्ष्य प्राप्त हुए है
===> यहाँ के निवासी चावल और बाजरा भी उगाते थे
===>चतुर्भुजाकार अग्निवेदिकाएँ, अनाज पीसने की चक्की, पशुओं की जली हुई हड्डियाँ, बटन के आकार की मुहरे, आदमी तथा कुत्ते को दफ़नाने तथा बिल्ली व कुत्ते के निशान वाली ईटें लोथल से प्राप्त हुए है
- सुत्कागेंडोर- मकरान तट पर स्थित यह नगर 'शुष्क एव बंजर' क्षेत्र होते हुए भी प्राकृतिक बंदरगाह होने के कारण सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख नगर था
- बालाकोट - यह स्थल पाकिस्तान के लासबेला घाटी तथा सोमानी खाड़ी के दक्षिण-पूर्व में खुटकेडा के मैदानों के मध्य स्थित है
===> इसका उत्खनन 1963 -1970 के बीच हुआ यहाँ से बंदरगाह स्थल भी प्राप्त हुए है
===> यहाँ मुख्यतः कच्ची ईंटो का प्रयोग किया जाता था
===> बालाकोट का सबसे समृद्ध उद्योग " सीप उद्योग " था यहाँ खुदाई में हज़ारों की संख्या में सीप की बनी चुडिया प्राप्त हुई है
अन्य महत्वपूर्ण स्थल
- कालीबंगा -राजस्थान के गंगानगर जिले के घग्गर नदी के किनारे कालीबंगा स्थित है
===> कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ " काली चूड़ियाँ " है
===> यहाँ टीलों के दोहरे दुर्गीकरण के साक्ष्य प्राप्त हुए है
===> कालीबंगा से कुँए, कच्ची ईंटे, खेत, खोपड़ी, ऊँट, कपडे, भूकंप , जूते साक्ष्य प्राप्त हुए है
- चन्हुदडो - यह वीराना क़स्बा पकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है
===> चन्हुदडो, मोहनजोदड़ों की तुलना में एक बहुत छोटी बस्ती थी जो लगभग पूरी तरह से " शिल्प- उत्पादन " में संलग्न थी
===> शिल्प कार्यो में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बात बनना सम्मिलित थे
अन्य महत्पूर्ण तथ्य
1. हड़प्पाई मुहर सम्भवतः हड़प्पा अथवा सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु थी जिन्हे " सेलखड़ी " नामक पत्थर से बनया जाता था
2. इन मुहरों पर सामान्य रूप से "जानवरों के चित्र" तथा " लिपि के चिन्ह " उत्कीर्ण है जिन्हे पढ़ा नहीं जा सका है
3.चन्हुदडो,लोथल और धौलावीरा से छेद करने के विशेष उपकरण मिले है
4. नागेश्वर और बालाकोट, शंख से बनी वस्तुओं जिनमे चुडिया, करछिया तथा पच्चीकारी की वस्तुओं के निर्माण के विशिष्ट केंद्र थे
5. हड़प्पा काल में मनकों के निर्माण कार्निलियन, जैस्पर, स्फ़टिक, क्वॉटर्ज, सेलखड़ी, शंख, पक्की मिटटी आदि से किया जाता था
6. सिंधु घाटी के लोग मातृदेवी के उपासक थे पुरुष देवों में "शिव" की पूजा की जाती थी तथा वृक्षों में पीपल, महुआ, तुलसी और पशुओ में " कूबड़ वाले बैल ", साँप की जाती थी
7. हड़प्पा सभ्यता के लोग नृत्य, शतरंज, जुआ, सिटी गाडी आदि से मनोरंजन करते थे
8. हड़प्पा निवासी माप के लिए "सीपी के टुकड़े" तथा तौल के लिए "बाटो" का प्रयोग करते थे अधिकांशतः बाट घनाकार होते थे
9. सिंधु घाटी सभ्यता का समाज " मातृ प्रधान " था तथा तब नारियो की स्तिथि सम्मान जनक थी
10. सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि में 400 चिन्हों की पहचान की जा चुकी है जो चित्रात्मक आधार पर निर्मित है
11. आभूषण बनाने के लिए सोने, चाँदी, क़ीमती पत्थरों, हाथी दाँत, तांबे, सीप आदि का प्रयोग किया जाता था
स्थल एव नदी तट
1. हड़प्पा ---- रावी नदी तट
2. मोहनजोदड़ों ---- सिंधु नदी तट
3. लोथल ---- घाघरा नदी तट
4. कालीबंगा---- घाघरा नदी तट
5. सुत्कांगेडोर---- दाशक नदी तट
6. चन्हुदडो---- सिंध नदी तट
7. बनावली----घाघरा नदी तट
8. रोजदी---- भादर
( हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण )
"पतन" का अर्थ है किसी सभ्यता की मूल विशेषताओं का आने वाले कुछ समय के बाद विलुप्त हो जाना! यह प्रक्रिया लम्बे समय या किसी भी घटना के द्वारा हो सकती है
इतिहासकारो के द्वारा हड़प्पा सभ्यता के पतन को आकस्मिक तथा क्रमिक दोनों माना गया है तथा सभी इतिहाकारों ने इस विषय भिन्न- भिन्न मत दिए है :-
- विदेशी आक्रमण - ' राम कुमार चंद्र ' के अनुसार आर्यों के आक्रमण के कारण सिंधु घाटी की सभ्यता का पतन हुआ! बाद में चंद्र ने अपनी थ्योरी में बदलाव करके तर्क दिए कि, आर्यों ने अल्पसंख्यक होते हुए भी सिंधु घाटी सभ्यता में पुरोहित बनकर पूरी सभ्यता पर नियंत्रण किया
- ' गार्डन चाइल्ड ' ने भी आर्यो के आक्रमण को ही सिंधु घाटी सभ्यता के अंत का कारण माना है उनका मानना था की सेमिट्री - H संस्कृति के निवासियों की पहचान उन्होंने वैदिक साहित्य में वर्णित आर्यो से की है
- ' मोर्टिमर व्हीलर ' ने पहली बार आर्यो के आक्रमण के पुरातात्विक साक्ष्य देने का प्रयास किया! इनके द्वारा मोहनजोदड़ों की सड़को पर बिखरे तथा कटे- फटे कंकालों को आक्रमण का परिणाम बताया है तथा ' गार्डन चाइल्ड ' की थ्योरी पर भी सहमति व्यक्त की!
- ' पी. वी. काणे ' ने 1953 में ' व्हीलर ' की थ्योरी की कड़ी आलोचना की है इनके व्हीलर की थ्योरी पूर्णतः मोहनजोदड़ो पर ही केंद्रित है काणे के अनुसार 1 लाख की जनसंख्या वाले शहर में मात्र 25 कंकालों के आधार पर नरसंहार की थ्योरी अनुपयुक्त है
- पारिस्थितिकी परिवर्तन को भी हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण माना जाता है यह पतन अचानक ना होकर लम्बी अवस्था में होगा
- जिसमे बाढ़ को पतन का महत्वपूर्ण कारण माना है क्योंकि सिंधु घाटी सभ्यता का नदियों से काफी गहरा संबंध था !
- एक दृष्टिकोण के अनुसार नदियों ने ही इस सभ्यता को जन्म दिया तथा विनाश का कारण भी नदिया ही बनी
- " मैक " ने चन्हुदडो के आवासीय बस्तियों में प्राप्त गाद के ढेरों के जमावड़े के आधार पर बाढ़ को सिंधु सभ्यता के पतन का कारण माना है तथा ए.एस. राव ने "लोथल" में मिले ऐसे ही साक्ष्यो के आधार पर समान निष्कर्ष दिया है
- बाढ़ के अलावा भूकंप को भी पतन का कारण माना गया है
- ' एम.आर. साहनी ' के अनुसार हड़प्पा बस्तियों, विशेषकर सिंध के बस्तियों का अंत सामान्य बाढ़ से नहीं बल्कि भूगर्भीय प्लटो के घर्षण की वजह से नदियो का मार्ग अवरुद्ध होने के परिणामस्वरूप क्षेत्रों के जलमग्न होने से हुआ है
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का पतन जल के आधिक्य से नहीं बल्कि उसकी कमी के कारण सम्भव हुआ !
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धन्यवाद , जय हिन्द
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