प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
अतीत के बारे में हम कैसे जाने?
वर्तमान में बीतने वाली घटनाओ को हम कई माध्यमों के द्वारा जान सकते है परन्तु यदि हमे सदियों पहले घटित घटनाओं के विषय में जानना हो, तो अब यह सवाल पैदा होता है, कि यह जानकारी हम कहाँ से प्राप्त करे? सदियों पहले घटित घटनाओ की जानकारी हमे इतिहास के द्वारा ही मिलती है! परन्तु ऐसा संभव नहीं है की अतीत मे घटित सारी घटनाये ही इतिहास हो! ऐसी घटनाये जिनके घटित होने के निश्चित रूप से साक्ष्य प्राप्त हो केवल उन्ही उन्ही घटनाओ को इतिहास कहा जाता है ! हमारे इतिहास को तीन भागो बाँटा गया है - 1) प्रारंभिक(प्राचीन ) इतिहास 2) मध्यकालीन इतिहास 3) आधुनिक इतिहास
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Ancient History Of India |
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत:
- साहित्यिक स्रोत
- पुरातत्विक स्रोत
- 1. साहित्यिक स्रोत को 3 भागों में विभाजित किया गया है जिसमे:
- धार्मिक साहित्य
- गैर धार्मिक साहित्य
- विदेशी विवरण
ऐसे साहित्य जो धर्म पर आधारित हो धार्मिक साहित्य कहलाते है इसके अंतर्गत- वैदिक ग्रंथ, बौद्ध ग्रंथ, जैन ग्रंथ शामिल है
- वैदिक धर्म ग्रंथ- में निम्नलिखत के द्वारा प्राचीन इतिहास का पता लगाया जाता है
-{वेद}
a. ऋग्वेद:- ऋग्वेद सबसे प्राचीन तथा प्रथम वेद है जिसमे मंत्रो की कुल संख्या 10627 है इसका मूल विषय ज्ञान है यह यज्ञ से भी सम्बंधित है 'ऋ' का अर्थ होता है श्लोक या छंदोबद्ध रचना! इसमें मन्त्र के रूप में देवताओं की उपासना करने वाले गीत है
b.सामवेद:- सामवेद यज्ञ दौरान गए जाने वाले गीत है इसमें कुल मंत्रो की संख्या 1545 मन्त्र है जिसमे 75 नए है इसे भारतीय संगीत का प्रांरभ भी माना जाता है
c.यजुर्वेद:-यजुर्वेद एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जो गद्य तथा काव्य दोंनो शैलियों में लिखा गया है
d.अथर्ववेद - अथर्ववेद का नाम अथर्वा ऋषि के नाम पर रखा गया है अथर्व का अर्थ है-जादू टोना! इस वेद मे आने वाली बाधाओं को ध्वस्त करने के मंत्र दिए है
-{ ब्राह्मण ग्रंथ }
उपरोक्त लिखे चारो वेदो को सरलता पूर्वक समझने के लिए ब्राह्मण ग्रन्थ की रचना की गयी थी
-{उपनिषद }
उपनिषदों को प्राचीन धर्म ग्रंथो का अंतिम भाग मन जाता है तथा इन्हे " वेदांत " भी कहा जाता है इनकी कुल संख्या 108 है परन्तु 13 को प्रमाणिक मन जाता है! ''मुण्डकोपनिषद'' हमारे भारत का आदर्श वाक्य (सत्यमेव जयते ) लिया गया है
-{ वेदांग }
वेदांगो की कुल संख्या 6 है - शिक्षा, व्याकरण, ज्योतिष, कल्प, निरुक्त,छंद !
-{ महाकाव्य }
महाकाव्य दो प्रकार के है :- 1. रामायण -रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी इसमें 24,000 श्लोक है बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यककाण्ड, किशिकांधकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड, उत्तरकाण्ड सात काण्डो में विभक्त है
2. महाभारत- महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास के द्वारा की गयी थी इसके सहायता से भी हमे प्राचीन इतिहास को जानने की मदद मिलती है
-{पुराण}
पुराण 18 भागो में विभक्त है
इसके अलवा बौद्ध ग्रन्थ जिन्हे त्रिपिटक (सूत पिटक, विनय पिटक, अभिधम्म पिटक) कहा जाता है तथा जैन ग्रंथ जिन्हे आगम कहा जाता है,भी प्राचीन इतिहास को जानने के स्रोत है
गैर धार्मिक ग्रंथ
ऐसे ग्रंथ जो किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित ,यात्रा वृतांत या उपन्यास हो गैर धार्मिक ग्रंथ कहलाते है इनमे कौटिल्य का अर्थशास्त्र ,मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका आदि शामिल है जिनके माध्यम से हमे प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है
विदेशी विवरण
भारत में आने वाले विदेशियों के द्वारा लिखी गयी पुस्तको से भी हमे प्राचीन भारत की स्थिति का पता चलता है जैसे -1. यूनानी यात्री -टेसियस, हेरोडोडास, अरिस्टोबुलस आदि
2. चीनी यात्री- ह्वेन सांग, सुंगचुंग
3. इस्लामिक यात्री - अल बरुनी , अल मसूदी आदि जैसे
इन सभी प्रसिद्ध लेखकों के द्वारा किय गए विवरणों से प्राचीन भारत के बारे में पता चलता है
2. पुरातात्विक स्रोत
1. पुस्तकों को ढूंढ़ना और पढ़ना : पहले पुस्तके हाथ से लिखी जाती थी जिसे "पाण्डुलिपि " कहा जाता है यह पाण्डुलिपियाँ ताड़पत्रो तथा पेड़ो की चाल से तैयार खाने की पत्रों पर विशेष तरीके से लिखी जाती थी
2. अभिलेख: ऐसे लेख जो पत्थर, धातु, या ठोस सतहों पर उत्कीर्ण या उकेरे जाते है "अभिलेख" कहलाते है कभी कभी अन्य लोग अपने आदेशों को लिखवाते थे ताकि लोग उन्हें देख व पढ़ सके और उनका पालन कर सके इनके अध्ययन को " पुरालेखशास्त्र " (एपिग्रेफी) कहते है समग्र देश में आरंभिक अभिलेख पत्थरों पर खुदे मिलते है सिक्कों की तरह अभिलेख भी देश के विभिन्न संग्राहलयों में सुरक्षित है सबसे अधिक अभिलेख " मैसूर " में मुख्य पुरालेखशास्री कार्यालय में संग्रहित है
३. सिक्के: जमीन को खोदकर सिक्के निकले गए है परंतु कुछ सिक्के व अभिलेख जमीन पर भी मिले है सिक्के अध्यन को "मुद्राशास्त्र "कहते है प्राचीन भारत में कागज़ की मुद्रा का प्रचलन नहीं था पुराने सिक्कें तांबे,चाँदी,सोने व शीशे के बनते थे, पकाई गयी मिट्टी के बने सिक्को के साँचे " कुषाण काल" के अर्थात ईसा की आरम्भिक तीन सदियों के है
इस पोस्ट में हमने केवल प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत का अध्ययन किया है यह सभी स्रोत हमे आने वाले प्राचीन इतिहास के चरणों को समझने में सहायता देंगे! आगे आने वाली पोस्टो में हम प्राचीन भारतीय इतिहास का सम्पूर्ण अध्ययन करेंगे!
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